सिरी सम्पादक जी,
पैरनाम।
कुसलक्षेम बड बन्हिया । विशेष की कहु । मुड जँ अहाँके ठीक हुअए त एकटा खेरहा सुनैवती । भोरे भोर एकगोटे मनतरी जी मर्लिँग वाक भेटल छलाह । अपनेके उल्हन,उपराग दैत छलाह । कहैत छलाह जे हियाँके लोक बहरियाके देखैय, नँई चाहैय हैय की, की सोहवैय नँई करैय हैय बहरिया । एक्के वेर एतेक कहँु हुथलकैय,दुसलकैय,टोकारा देलकैय, कोकारलकैय, दुर्रछिया कएलकैय,हुरपेटलकैय, कतिओलकैय, नकदम कैल कैय। नकमाइन छोरा क ध दैअ, यौ महराज । एक्कुहँटा काम नँई नीक जाँकित कर दैअ है । कथु करु, कथु बजबो करु त झाउ, झाउ क दौरै जाई –जाई हाई,हे हे करै है।जहियाँ सँ मनतरी बनलिय है,तहियासँ ने खायके ठेकान ने सुतय,बैसके ठेकान, कहियो निचैनसँ नँई सुतलीअ ग, १२बजे रातिसँ एम्हर कहियो क्वार्टरमे घुरिक अइबो नँई कैलिअ । फेर भोरेसँ लोक करह पर लागल । गारी आ कुरसी पर बैसल बैसल,टाईम कुटाईम कहियो एहि होटलमे कहियो ओहि होटलमे, कहियो फिल्डमे, कहियो कतौ बेर कुबेर खैला–पिलासँ बाबासीर उखैर गेल है, बल्ड प्रेसर तवाह कएने है,सुँगर आ युरिक एसिड सेहो अलगे परेशान कएने है । बुझु जे जिअव कठिन भ गेल हैय । तै परसँ अहाँक गोतिआ,समांग लोकनि सेहो अलगे हर्रविरो मचौने रहय,जेना सिधासमर बान्हि क आमिल पिने होइ, हाथ धो क पाछु परि गेल है । ताहिदुआरे आव फेसोबुक देखनाई बन्न क देने छियै । जहाँ एक्कोबेर स्वीप करु की सरकारके उक्टापैची, मनतरी के नाँगट उघार । तैं लोक जे हे कहै ओहे सुनै छी,पतिआ छी आ बुझैत छी । मन बेचैन रहै,सभ दिन किदुन कहाँदुनके फिकिर । तै कनिक मर्लिँग वाक क लैछी, ककरा कहियो के पतिअतै,दिलके बतिआ ।एकटा छलिह सेहो कएक दिनसँ निप्पत्ता है,बेपत्ता है,बुझाइ ओहो कतौ सहटि गेलै । तब बुझु त साफेसाफ एक्कहुटा कामके नाह जस नँई? एना कहुँ एक्केवेर भेलै,हमहँु सुन आदमी छि ।कोनो भरि भरि छिप्पा भाते खाली खाईछी से वात नँई बातो बुझैत छीयै । बुझाई जेना हमरासुनके जनकपुरिया सभ भित्तामे साटि देतै की? लतखुर्दन आ खाली बलपेलीए बतिआ है सभ कुछोमे । एक्के साँसमे मनतरी जी बजैत चैल गेलाह, बुझाई जेना सावर मन्तर जाप करैत होई । दम धरवाक आग्रह करैत कहलियनि,जे देखल जाओ मनतरी जी,हमरासँ की होयत,हम त अपने कटला गाछ तर छी, एकबेर सम्पादक आ ओहन खुरलुच्ची हेअर, उपद्रवी जनसँ कथिला ने सेटिँग क लैत छी । ओ कहलैन्ह, औजी ईहो सभ कएल, ई कोन नयाँ विकल्प अहाँ दै छी । एकटासँ करै छी त दोसर तमतमा जाई छै,पिताइल रहै छै । ओहो सभ ततेक नँई भ गेल हई जे ककरो जोरे ककरो नँई बनै हई । हम कहलियैन्ह बेश त ई वात एकवेर हम अपन जावीर संपादक जीके कहैछीयै । तैं अपनेके ई सारा खेरहा सुनाओल । एकबेर लइयो दइयो क केहुना क बात व्यवस्था मिला दिऔ । नयाँ लोक सभ छै,बेसी बातो नँई बुझल छै । ओहुमे कतेक दिनका मेहमाने छथि ई सभ से एक वेर सोचि देल जाओ अपने, याहए मौका अछि, गोटी सुतरबाक । मनतरी जी सभ लाल गोटी छु लेताह,आ की नँई ? ओना मनतरी जी सेहो कम नँई मोटा बन्हलथि?माल मारियो क चाल नँई पाब देलनि । की करबै सभ व्यवस्थामे याह समाज आ व्यक्ति रहै छै ने । तैं निफिकीर कोना भ सकैए, खैर जे जेना कहल सुनल माफ कएल जेतै ।
अपनेक खुरलुच्ची समदिया
लवरसटकानन्द