राजन दास, धनुषा :

पृथ्वी पर सब किछु सब ठाम भेटत
मुदा जन्मदैबला माँ भेटबाक कोनो उपाय नहि।

हृदयक टुकड़ी निकालि आँखि मे चिपका दैत छथि
भूखल बैसल ओ अपन स्तन चूसबाक प्रयास करैत छथि ।
मायक खाएल घास मे जीवन बनैत अछि
सृष्टिकर्ता के इतिहास में माँ सृष्टि के स्रोत छैथ।

कोखि सँ निकालि धरती पर आनि दैत छथि
टैटेटेट कहि मधुर सुग्गाक भाषण सिखाबैत छथि ।
नानी कखनो काल कोरा मे राखि गाबैत छथि
माँ केश के हाथ सॅं थपथपाबैत छथि जे हुनका सुतय ।

राति मे जखन नन जागि जायत तखन कनेक झपकी लिअ
नानी कानैत अछि आ जल्दीए चलि जाइत अछि।
ओ अपन नन के संग खेलाइत अछि आ ओकरा पकड़य नहि चाहैत अछि
सृष्टिकर्ता के सृष्टि के उद्धार करै वाला माय छै।

ओ ‘को खा को खा’ कहि नानी केँ भोजन खुआबैत छथि ।
बगाई दूधक धारसँ बच्चाकेँ नहाबैत अछि ।
भले ही मातृ प्रेम उदास हो जेना रिट्टिन
भले ही बच्चा खोंता छोड़ क दूर चलि जाय।

बच्चाक जन्मक बाद मायक रूप बिगड़ि जाइत छैक
डोली मे रहला के बाद बच्चा सब लग जाइत छथि।
ओना ई सब माय के लेल एकटा महिमा अछि
माँ निस्वार्थ देवी छथि, आब कोना नहि कहब!

आँखि जा धरि जीबैत अछि ता धरि देखि सकैत अछि
जँ हुनका सभ लग सत्ता छनि तँ लोक सेवा मे शामिल हेबाक लेल आओत।
पृथ्वी पर सब किछु सब ठाम भेटत
मुदा बच्चा के जन्म देबय लेल माय के खोजय के कोनो उपाय नहिं !!!!!

२०८१ कार्तिक ७, बुधबार १३:०२मा प्रकाशित

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